Wednesday 19 April 2017

"रात्रि भोजन त्याग का फल"...

Ratri Bhojan Tyag image



"रात्रि भोजन त्याग का फल"...


चम्पापुर नगर में एक सेठ और सेठानी थे | दोनों बहुत ही धर्मात्मा और दयालु थे | उसी नगर में एक साफ सफाई करने वाले ,भीख मांग कर खाने वाले ,मजदूरी करके जैसे तैसे मुशिकल से कमाने वाले गरीब मेतर पति पत्नी रहते थे | जिनमें आपस में अच्छा प्रेम था दिन भर जो भी मिलता वो रात को साथ बैठ कर खाना खाते |

एक दिन सेठ को अपने व्यापार में किसी काम हेतु उन मेतर की आवश्यकता पड़ी तो सेठ उसके पास गया उन्हें काम बताया फिर मेतर ने उसकी पत्नी जाग्रा को सेठ के साथ भेज दिया | जाग्रा ने दोपहर पूरी होने तक काम किया | सेठ दयालु था उसको लगा की ये जाग्रा अब भूखी हो गयी होगी तो उन्होंने जाग्रा को कहा की तू मेरे घर पर जाना वहा सेठानी को बोल देना तो वो तेरे को खाना देगी वो खा लेना |

जाग्रा खुशी खुशी सेठ के घर के लिये रवाना हुई | रस्ते में सहेली मिल गयी तो बातो बातो में रात हो गयी और जब रात को सेठ के घर पहुच कर सेठानी से खाना मांगने लगी तो सेठानी ने कहा की बहन हम रात को खाना नही खाते और ना ही बनाते हैं | इसलिये अब तो मेरे पास नही है मैं सुबह होते ही दूँगी तुम यही रात को विश्राम कर लो |

जाग्रा बोली सेठानी मुझे सेठ ने बोला था की मेरे घर पर खाना लेकर खा लेना | मुझे भूख भी लगी है आप मुझे जूठ बोल रही हो खाना नही देने के लिए बहाना कर रही हो | तब सेठानी ने कहा की हम लोग कभी भी रात्रि भोजन नही करते हैं | रात्रि भोजन पानी का हमारा त्याग रहता है | फिर वह जाग्रा व्याकुल होकर वही रात्रि गुजारने बैठ जाती है इतने में शाम से खेल कूदने गया सेठ का लड़का घर आता है और माँ से खाना मागता है तो सेठानी बोली मै तेरे को शाम को बार बार बुला रही थी तब तो तू आया नही इसलिये बेटा अब तो रात हो गयी है अपन जिनकुल में जन्मे हैं रात में खाना नही खाते | तो बेटा भी माँ के वचन सुनकर शांत हो चला जाता है |
जब ये मामला जाग्रा देखती है तो सोचने लगती हे की इसने बेटे को भी रात को खाना नही खिलाया इसका मतलब ये सत्य बोल रही है | उसके मन में प्रश्न उठने लगते हैं और फिर वह सेठानी से पूछती है आप रात्रि को खाना पानी क्यों नही करते | तो सेठानी कहती है की रात को खाना मांस खाने के बराबर है रात को पानी पीना खून पिने के बराबर है क्योकि रात को असंख्यात जीवों की उतपत्ति होती है जो हमारे भोजन में प्रवेश कर जाते हैं।

रात्रि भोजन से महापाप का बन्ध होता है | रात्रि भोजन करने वाले अगले भव में दरिद्र ,भिखारी ,बाज,सूअर ,चील जैसी नीच पर्यायों में जन्म मिलता है |
मांग मांग कर जूठे भोजन से पेट भरना पड़ता है। जीवन अभावों में गुजरता है और जो रात्रि को भोजन नही करते रात में आहार पानी का त्याग रखते हैं वो नियम से अगले भव में राजा ,महाराजा, सेनापति,नारायण,चक्रवर्ती,बड़े बड़े सेठ जैसी वैभवशाली उच्च पर्यायों में जन्म लेते हैं |
जीवन भर अन्न और धन के भण्डार भरे रहते हैं इत्यादि वचनों को सुनकर जाग्रा कहती है ओह सेठानी लगता है मैने भी पहले भव में जीवन भर रात को ही खाया पिया इसलिये आज इस भव में भिखारी की तरह सदैव इधर उधर भटक रही हूँ  | जाग्रा के मन में रात्रि भोजन के प्रति उदासीनता उठने लगी
वो सेठानी से बोली की मालकिन आप मुझे नियम दें तो मैं भी रात को कभी खाना नही खाऊँगी मैं भी अपना भव सुधारना चाहती हूं।
तो सेठानी बोली नही ये तुमसे सम्भव नही तुम मेतर् हो तुम्हारे घर में अधर्म क्रियाओ का चलन रहता है इसलिए तुम ये नियम नही सम्भाल पाओगी।
फिर भी जाग्रा ने जबरदस्ती सेठानी को साक्षी मानकर नियम अंगीकार कर लिया और रात को वही सो गयी अगली सुबह सेठानी ने उसे वहा खाना खिलाकर
शाम के लिए अच्छा भोजन देकर उसको विदा किया।

  जाग्रा भी शाम ढलते ढलते अपने घर को लौट आई फिर रात को जाग्रा का पति नशे में घर पर आया।
जाग्रा ने उसे भोजन परोसा तब उसका पति बोला की तुम भी खाओ जाग्रा बोली मै रात को नही खाऊँगी मैने सेठानी से नियम लिया है।
मेतर गुस्से में बोला ये कैसे सम्भव है हम दोनों हमेशा रात को साथ साथ खाना खाते हैं आज तक कभी अलग अलग नही खाया फिर तू ऐसा कैसे कर सकती है।
मेरी इजाजत के बिना तूने ऐसे कैसे किया | ये कोई नियम वीयम कोई नही चलेगा तुझे मेरे साथ खाना होगा नही तो तुम ये घर छोड़ कर चली जाओ और भटक भटक कर अपना नियम पालो तो जाग्रा बोली मुझे घर छोड़ना मंजूर है पर नियम नही तोड़ूँगी।

रात्रि भोजन की वजह से इस भव में दरिद्र भिखारिन बनी हूँ  पूरा जीवन अभावों में गुजरा है आजतक कोई सुख नही पाया मैः कभी रात्रि भोजन नही करूंगी ऐसा बोलकर घर से बाहर निकल गयी इतने में मेतर् भी क्रोधित हो बाहर आया और जाग्रा की चोटी पकड़ कर खीच कर घर पर लाया।
उससे अतिक्रोधित होकर खाने के लिए जबरदस्ती करने लगा | लेकिन जाग्रा बोली मै मर जाउंगी लेकिन रात को नहीं खाऊँगी | इतने में मेतर् ने पास में ही पड़े खंजर को उठाकर जाग्रा के पेट पर दे मारा | जाग्रा लहु - लहुलुहान हो उठी लेकिन उसके मन में तो सेठानी के वचन ही उमड़ रहे थे | ऐसे ही सोचते सोचते नियम पूर्वक उसका वहीं मरण हो जाता है | वही जाग्रा का जीव मरकर उसी चम्पापुर की सेठानी के गर्भ में आकर सेठ की पुत्री के रूप में जन्म लेती है |

 देखो बन्धुओं  कहा एक निम्न कुल मैतरानी का जीव सिर्फ रात्रि भोजन के त्याग के परिणाम से अन्न व धन के महाभन्डार वाले नगर सेठ के घर में जन्म ले लेती है |

ये है पुण्यव्रत की महिमा...

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