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क्यों दोष दूँ औरों को कोई भी,
मेरे कर्म ही उदय में आ रहे ।
कृतकर्मों का ऋणानुबंध है जो,
दुख, दर्द या पीड़ा पहुंचा रहे ।।
यह अलार्म है जीवन के लिए,
सजगता से अपने कर्म करूँ ।
अवसर मिला यह दुर्लभ मुझे,
सफल अपना मैं जन्म करूँ ।
निकाचित कर्म है भोगने मगर,
नए कर्मबंध का मैं ध्यान करूं ।
"स्पर्श" करूं मैं पुण्यकर्म और,
पापकर्म का प्रत्याख्यान करूँ ।
🙏 जय जिनेंद्र 🙏
भव भटकन में कारण सारे,
दुर्भावों को धार लिया ।
रत्नत्रय मय आत्म भाव को,
नहीं अभी तक स्पर्श किया ।
शुद्ध सिद्ध पद स्वभाव मेरा,
प्रगट करू प्रभु भक्ति से ।
नाम स्मरण के सेतु द्वारा,
नाता जोड़ू मुक्ति से...
🙏 जय जिनेन्द्र 🙏
🙏 जय जिनेन्द्र 🙏
देखो निमित्त न सुख दुख देता,
झूठी पर की आस तजो ।
पर से भिन्न सहज सुख सागर,
में ही प्रतिक्षण केलि करो ।
दोष नहीं देना पर को,
निज में सम्यक पुरुषार्थ करो ।
मोह हलाहल बहुत पिया है,
साम्य सुधा अब पान करो ।
साम्य भाव ही उत्तम औषधि,
भ्रमण रोग जासों जावे ।
ज्ञाता दृष्टा रह जाऊँ बस,
राग द्वेष विनश जावे ।।
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